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कविता-- प्यार या आकर्षण


कविता--प्यार या आकर्षण

तुम हो मेरे अपने
पता नहीं कितने
ये प्यार है या महज आकर्षण
इसका कुछ नहीं है गनण

अंधेरी रातों में 
जब डराता है अमावस
तब,सिर्फ तुम..ही तो याद आते हो मुझे
मेरे खयालों में
तब,यह प्यार ही है या महज आकर्षण..!

चांदनी की दूधिया रजताभ में
सिमटकर मैं कुछ कहना चाहती हूं तुमसे
चांदनी की शीतल छांव अक्सर जला देती है मुझे
पर,मैं समझ न पाई कि
यह प्यार है या आकर्षण..!!

**
सीमा..✍️❤️
©®
#लेखनी दैनिक प्रतियोगिता

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11 Comments

Achha likha hai 💐

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Suryansh

13-Sep-2022 08:48 PM

Wahhh

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Pratikhya Priyadarshini

13-Sep-2022 05:56 PM

Bahut khoob 💐

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